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लाल झंडे के नीचे दमन की दास्तान: आलोक मेहता

कामरेडों के चंगुल में फंसकर पश्चिम बंगाल की हालत बदतर हो चुकी है। कामरेडों ने पश्चिम बंगाल को हसियां-हथौड़ा से पीट-पीटकर लहु-लुहान कर दिया है। कभी भारत के लिए प्रकाशस्तंभ का कार्य करनेवाले पश्चिम बंगाल की दुर्दशा जगजाहिर है। सिंगूर और ननदीग्राम ने कामरेडों के किसान-मजदूर विरोधी चेहरे को उजागर कर दिया है। गुरू रवींद्रनाथ टैगोर, प्रख्यात क्रांतिकारी अरविंद घोष, हिंदुत्व के महानायक स्वामी विवेकानंद का पश्चिम बंगाल आज कामरेडों से मुक्ति के लिए तड़प रहा है।

प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका 'आउटलुक' के सुप्रसिध्द संपादक श्री आलोक मेहता ने हाल ही में कोलकाता प्रवास किया। उन्होंने अपने अनुभवों को 'आउटलुक(17 सितंबर, 2007) में 'प्रसंगवश:' स्तंभ में प्रस्तुत किया है। माकपा शासित पश्चिम बंगाल की जर्जर हालत पर उन्होंने क्षोभ व्यक्त करते हुए लिखा है बंगाल की धरती और वहां के लोग धन्य हैं जो यह सब सहते हुए मौन हैं। हम यह लेख यहां प्रकाशित कर रहे हैं-


कभी कल्पना नहीं की थी कि ओम प्रकाश चौटाला, नरेन्द्र मोदी और लालू प्रसाद यादव शासित राज्यों से अधिक भय पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट राज में हो सकता है। पिछले सप्ताहांत कोलकाता की यात्रा के दौरान राज्य की बदतर स्थिति तथा स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर अंकुश की दर्दनाक बातें सुनकर आश्चर्य हुआ। फिर दमन की दास्तान सुनाने वाले प्राध्यापक, लेखक, पत्रकार, प्रगतिशील विचारों वाले, गैर कांग्रेसी, गैर भाजपाई, गैर ममताई हैं इसीलिए उनके तथ्यों को पूर्वाग्रही नहीं कहा जा सकता। उनके आक्रोश की पुष्टि बांग्ला भाषा के एक स्थानीय टी.वी. चैनल पर प्रसारित हो रही रिपोर्ट से हुई। रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता महानगर सीमा क्षेत्र की एक बाहरी बस्ती के स्कूल में प्रिसिपल ने 'मिड डे मील' योजना के तहत बच्चों को भोजन देने के लिए सरकार की ओर से नियुक्त महिला कर्मचारी को इस आधार पर वापस भेज दिया कि वह अल्पसंख्यक समुदाय की है तथा उसके हाथ का बना खाना बच्चे कैसे खाएंगे। प्रगतिशील वामपंथी सरकार के अधिकारियों ने प्रिंसिपल पर कार्रवाई के बजाय उस महिला को अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र के स्कूल में तैनात करवा दिया। यदि यही घटना गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के भाजपा शासित राज्यों में हो गई होती तो हमारे जैसे कथित प्रगतिशील पत्रकार ही नहीं, केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता तथा तथा दिल्ली में बैठकर राजनीति करने वाले अंग्रेजीदां कामरेड संसद को सिर पर उठा लेते। बंगाल में होने वाली घटनाओं पर लीपापोती आसान है अथवा पहली बार मिले प्रगतिशील लेखक-प्राध्यापक के अनुसार बंगाल में दमन का भंडाफोड़ करने की हिम्मत पत्रकार-लेखक नहीं जुटा सकते। यदि कोई कोशिश करता है तो कामरेड समर्थकों के पास उन्हें सबक सिखाने के पर्याप्त इंतजाम हैं।


मैंने अपने ढंग से थोड़ी छानबीन की कोशिश की तो सरकारी रिकार्ड से भी पश्चिम बंगाल के प्रगतिशील राज की पोल खोलने वाले तथ्य सामने आए। अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के मुद्दे पर केंद्र सरकार के खंभे हिलाकर संयुक्त सेनाभ्यास के विरूध्द सड़कों पर जुलुस निकालने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां अब गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी के मुद्दों पर आंदोलन नहीं छेड़ रही हैं। केंद्र की सरकार उनकी कृपा पर आश्रित है तथा उसी सरकार के राष्ट्रीय मानवाधिकर आयोग ने केवल एक महिने पहले पश्चिम बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार से इस बात का जवाब मांगा है कि चाय-बागानों में बढ़ रही बेरोजगारी के कारण केवल एक वर्ष में 750 श्रमिकों की मौत की घटनाएं हुई हैं। राज्य सरकार से पूछा गया है कि चाय-बागानों के बंद होने से बेरोजगार हुए लोगों को राहत देने के लिए कदम क्यों नहां उठाए गए।


हमारी प्रगतिशील सरकार के योजना आयोग की उदारवादी नीतियों की आलोचना हम अपने स्तंभों, खबरों में करते रहे है और हमारे वामपंथी कामरेडों को योजना आयोग के नीति-निर्धारकों के पूंजीवादी रवैये से नाराजगी रहती है। लेकिन उसी योजना आयोग द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से कम्युनिस्ट राज की पोल भी खुली है। कुछ अर्से पहले किए गए इस अध्ययन के अनुसार पश्चिम बंगाल में 32 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे वाली है और उसमें 10 प्रतिशत को तो राशन की सरकारी दुकानों से भी मुट्ठी भर अनाज नहीं मिल पाता। सब जानते हैं कि बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में चावल मुख्य भोजन है तथा एक व्यक्ति को औसतन करीब 550 ग्राम चावल प्रतिदिन यानी महीने में 16 किलो 500 ग्राम मिलना चाहिए। बेरोजगारी और गरीबी के शिकार लोग अपने परिवार के लिए इतने चावल का इंतजाम भी नहीं कर सकते हैं। कम से कम 4,612 गांवों में गरीब परिवार सड़क पर सड़ा-गला खाना खाकर बीमारी तथा मौत के शिकार होते हैं। खाने की बात दूर रही, चाय-बगान बंद होने पर प्रबंधकों की ओर से दिए जाने वाले पीने के पानी की टोटियां भी बंद हो जाती हैं। यदि मां-बाप किसी तरह मजदूरी ढूंढते हैं तो उनके बच्चों का स्कूल जाना बंद हो जाता है औ वे भी मजदूरी ढूंढते हैं या मां-बाप के काम में हाथ बंटाते हैं। ऐसे गरीब लोगों पर कम्युनिस्ट पार्टियों का नियंत्रण आसान होता है। उन्हें भेड़-बकरियों की तरह 'मतदान केन्द्रों' पर बटन दबाने भेजा जा सकता है। आखिरकार, सिंगुर में ग्रामीणों का विद्रोह ममता नहीं करवा सकती थीं। सिंगुर-नन्दीग्राम में तो कम्युनिस्ट मंत्री तक घुसने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं।


एक और दिलचस्प बात। दिल्ली में हमारे प्रगतिशील कामरेड वर्षों से भोपाल गैस कांड को लेकर अमेरिकी कंपनी तथा वहां के शासकों की निर्ममता के विरूध्द आग उगलते रहे हैं। लेकिन भोपाल गैस कांड के लिए दोषी यूनियन कार्बाइड की मातृ संस्था बहुराष्ट्रीय अमेरिकी कंपनी डाऊ केमिकल्स को हल्दिया-नंदीग्राम में केमिकल कारखाना लगाने के लिए बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार न्यौता दे रही है। भोपाल गैस कांड के पीड़ितों का एक प्रतिनिधिमंडल दो महीने पहले कोलकाल भी पहुंचा, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। यह कैसा मजाक और दोहरा मानदंड है। आप भोपाल गैस कांड के लिए दोषी प्रबंधकों तथा पीड़ितों को मुआवजा न देने वाले लोगों को दंडित करवाने के बजाय उनकी आरती उतारने के लिए बेताब हैं। चीन तो दूर है, कोलकाता के बहादुर कामरेडों को लाल सलाम।गरीबों, मजदूरों, किसानों और सिर पर मैला ढोने वालों की स्थिति अन्य राज्यों की तरह होने पर कम्युनिस्ट मित्र सारा दोष केन्द्र की निकम्मी सरकारों को देते हों लेकिन कोलकाता का शिक्षित वर्ग भी तो प्रताड़ित और दुखी है। प्रमुख सड़कों की हालत खस्ता है, ठेकेदारों-अफसरों और नेताओं के कमीशन दिल्ली से कम नहीं, ज्यादा है। पूंजीवाद या मार्क्सवाद का अंतर पढ़ा सकने वाले विश्वविद्यालय में कुछ विषयों में छात्रों को पढ़ाने पर मात्र 150 रूपये का भुगतान होता है। औसतन महीने में चार बार बुलाए जाने पर एम.ए., पीएच.डी किए व्यक्ति को 600 रूपये का भुगतान होता है। इतने पैसों में तो कोलकाता या मुजफ्फरपुर में अशिक्षित ड्राइवर नहीं मिल सकता। घर में काम करने वाली नौकरानी इससे अधिक पैसा कमा लेती है।


प्रगतिशील कम्युनिस्ट शासित कोलकाता में 50 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदी भाषी उत्तार भारतीयों की है, लेकिन उनकी स्थिति किसी रंगभेदी-नस्लभेदी देश के दूसरी श्रेणी के नागरिकों की तरह है। उनके दुख-सुख की कोई चिंता नहीं है। राज्य सरकार की हिन्दी अकादमी लगभग 11 वर्षों से पुनर्गठित नहीं होने से ठप पड़ी है। हां, चीन और वियतनाम से आने वाले गैर अंग्रेजी भाषियों की आरती उतारने, स्वागत द्वार बनवाने इत्यादि पर लाखों रूपया खर्च करके उन्हें सेल्यूट करते हुए कामरेड़ों को गौरव का अनुभव होता है। बंगाल की धरती और वहां के लोग धन्य हैं जो यह सब सहते हुए मौन हैं। (साभार: आउटलुक)

नंदीग्राम में ताजा हिंसा, एक की मौत

कोलकाता, 24 अगस्त
पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में भड़की ताजा हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई है। शुक्रवार को जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे गुट भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) के बीच हुई भीड़ंत में एक स्थानीय व्यक्ति की मौत हो गई।
पश्चिम बंगाल के महानिरीक्षक (मुख्यालय) योगेश चटर्जी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि सीपीआई-एम और भूमि समिति के बीच हुई गोलीबारी में माधव मंडल नामक व्यक्ति की मौत हो गई है। यह घटना नंदीग्राम के रानीचक में हुई। मरने वाला व्यक्ति भूमि उच्छेन प्रतिरोध समिति के सदस्य बताया जाता है। मंडल की मौत के बाद नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे लोगों के मारे जाने की संख्या 25 हो गई है। इनमें इस साल 14 मार्च को प्रदर्शनकारियों पर पुलिस द्वारा चलाई गई गोली में 14 लोगों के मारे जाने की संख्या भी शामिल है। चटर्जी ने कहा कि नंदीग्राम की स्थिति अब भी स्थिर नहीं हो पाई है। वहां दोनों गुटों ने रानीचक और काकापुरा की करीब 30 घरों को जला दिया था। यहां से करीब 150 किलोमीटर दूर ईस्ट मिदनापुर जिले के नंदीग्राम में हिंसा अभी नहीं थमा है।
भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति, जिसे तृणमुल कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक समूहों का समर्थन प्राप्त है, ने शनिवार को ताजा हिंसा के विरोध में नंदीग्राम में 12 घंटे के बंद का आह्वान किया है। इस साल जनवरी माह से इस क्षेत्र में हिंसा का दौर जारी है। यहां पर प्रस्तावित केमिकल फैक्ट्री और विशेष आर्थक जोन के लिए जमीन अधिग्रहण का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। यद्यपि सरकार ने प्रस्तावित विशेष आर्थिक जोन की योजना स्थगित कर दी है फिर भी हिंसा जारी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

वाम, वाम कत्लेआम

रतन टाटा ने कहा है कि अगले साल जनवरी के मोटर शो में वे अपनी लखटकिया कार को सबके सामने प्रस्तुत कर देंगे. काम चल रहा है और कार फैक्टरी उसी सिंगूर में बन रही है जहां तापसी मलिक के साथ बलात्कार हुआ और उसकी इतनी निर्मम हत्या हुई थी कि पढ़कर रोंया-रोंया कलप उठता है. सिंगूर और नंदीग्राम पर प्रसिद्ध शिक्षाविद सुनंद सान्याल का एक लेख-
18 दिसंबर 2006 को मुंह अंधेरे तापसी मलिक रोज की भांति घर से निकली थी ताकि उजाला होने से पहले वह दिशा मैदान से निपट ले. तापसी निकली ही थी कि कुछ लोगों ने उसे घेर लिया. उसका हाथ-पैर-मुंह बांध दिया गया. वामपंथी गुंडों ने बारी-बारी से उसके साथ बलात्कार किया. फिर उसे एक जलती भट्टी में डाल दिया गया. तापसी मलिक का अंत हो गया लेकिन उसके इस दुखद अंत से बंगाल में वह गुस्सा नहीं फूटा जिसे माकपा गंभीरता से लेती. इसलिए नतीजा हुआ नंदीग्राम.
नंदीग्राम में राहत कार्य में लगी डॉ शर्मिष्ठा राय कहती हैं कि नंदीग्राम में हिंसा के दौरान औरतों की योनि को खासकर निशाना बनाया गया है. औरतों की योनि में गोली मारी गयी और कई मौकों पर उनकी योनि में माकपा काडर ने लोहे की छड़ घुसा दी. इस बात की शिकायत राज्यपाल को मेधा पाटेकर ने भी की थी. एक 35 वर्षीय महिला कविता दास को दो खंबों से बांधकर सामूहिक बलात्कार किया गया. उसके पति ने उसे बचाने की कोशिश की तो माकपा काडर ने उसके बच्चे को रौंदकर मार देने की धमकी दी. अपने बच्चे की खातिर उस व्यक्ति को अपनी पत्नी का बलात्कार सहना पड़ा. 20 मार्च को एक 20 वर्षीय माकपा कार्यकर्ता को सोनचुरा में गिरफ्तार किया गया. उसने स्वीकार किया कि 14 मार्च 2007 को हुए नंदीग्राम गोलीकांड के दौरान उसने एक 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार किया था.14 मार्च की गोलीबारी एक पुल के पास हुई थी. सीबीआई को शिकायत की गयी थी कि इस पुल के पास शंकर सामंत के घर में 14 औरतों को उठाकर ले जाया गया था. सीबीआई ने अपनी जांच में उस खाली पड़े घर से औरतों के आंतरिक कपड़ों के टुकड़े मिले जिसमें खून के धब्बे लगे हुए थे. गांव के लोगों ने बताया कि उन्होंने उस दिन कई घंटे इस घर में चीख-पुकार सुनी थी. लेकिन घर के चारों ओर माकपा काडरों का मुस्तैद काडर मौजूद था. इसलिए वे लोग वहां नहीं जा सके.
मैं खुद गणमुक्ति परिषद के सदस्यों के साथ तामलुक अस्पताल गया था. वहां एक किसान की पत्नी से मिला. मुझे देखकर वह 25-26 साल की लड़की फूट-फूट कर रोने लगी. शायद एक बुजुर्ग को अपने सामने देख उसके सब्र का बांध टूट गया था. उसने बताया कि उसके साथ पुलिस की मौजूदगी में बलात्कार किया गया. माकपा काडर ने उसके ब्लाउज फाड़ डाले और उसके निप्पल काट लिये. उसके साथ एक दूसरी औरत जो अस्पताल में इलाज करा रही थी उसका एक गाल माकपा काडर ने काट खाया था. बाद में डोला सेन ने राज्यपाल को जो शिकायत की थी उसमें उन्होंने कहा था कि माकपाई गुण्डों द्वारा इस तरह क्षत-विक्षत की गयी औरतों की संख्या सैकड़ों में है.दूसरी बार नंदीग्राम में जब झड़प हुई तो माकपा कैडर ने एक बच्चे को गोली मार दी. एक महिला उसको बचाने के लिए दौड़ी तो उसको लाठियों से पीटा गया. महिला भाग गयी. इसके बाद माकपा कॉडर ने यह मानकर कि बच्चा उनकी गोली से मर चुका है उन्होंने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. ऐसा उन्होंने लाश को हटाने के लिए किया या फिर अपनी मौज के लिए, पता नहीं. ऐसी कुछ लाशों को उन्होंने वहां दफना दिया और कंक्रीट के स्लैब से ढंक दिया. अन्य लाशों के पेट फाड़ डाले गये ताकि उन्हें पानी में फेंकने पर वे पानी पर तैरने न लगें. काटे गये सिरों को बोरियों में भरा और ले जाकर नहर में फेंक दिया.
यह कहना कि सरकार को कुछ पता नहीं था, ठीक नहीं है. नंदीग्राम का पूरा आपरेशन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और निरूपम सेन की दिमाग की उपज थी. और लक्ष्मण सेन, विनय कोनार, विमान बोस जैसे मंत्रियों और नेताओं ने पार्टी मशीनरी के स्तर पर उन्हें मदद भी मुहैया कराई थी. मुख्यमंत्री भले ही झूठ बोले कि उन्हें इसका तनिक अंदेशा नहीं था लेकिन गृहसचिव प्रसार रंजन रे ने कहा है कि "हमने खुफिया रपटों के आधार पर ही पुलिस बल तैनात किये थे. बेशक मुख्यमंत्री को इसकी पूरी जानकारी थी." वैसे भी मुख्यमंत्री के खिलाफ यह आरोप लगता रहा है कि वे "आदतन पक्के झूठे" हैं. आरएसपी की एक नेता क्षिति गोस्वामी ने सार्वजनिक तौर कहा था कि बुद्धदेव के दो चेहरे हैं, उसमें एक मुखौटा है.
लेकिन बुद्धदेव की सरकार रहते नंदीग्राम का पूरा सच कभी सामने नहीं आ पायेगा. तभी विमान बोस को लगता है कि लोग नंदीग्राम की बातों को जल्दी भूल जाएंगे. लेकिन नंदीग्राम में हत्या, बलात्कार, आगजनी का जो सिलसिला अभी भी छुटपुट चल रहा है उसे वहां के बच्चे भी देख रहे हैं. क्या समय के साथ उनकी स्मृति से भी यह बात मिट जाएगी कि बंगाल का समाज लुटेरों, पेशेवर हत्यारों और बलात्कारियों से भरा पड़ा है.
सच तो यह है कि माकपा की अगुवाई में चल रही राज्य सरकार पिछले तीस सालों से सड़ रहे नासूर का मवाद है. यह जिस तरह की राजनीति करती है वह एक स्थाई बुराई है. यह पूरे समाज को दो हिस्सों में बांटकर देखती है. "हम" और "वे" की इस राजनीति में समाज का एक हिस्सा कोलकाता के आलीमुद्दीन स्ट्रीट स्थित माकपा मुख्यालय के आदेशों का पालन करनेवाले हैं. शेष अन्य "वे" हैं यानि पराये.
चित्र-1, तापसी मलिक का जला हुआ
शवचित्र-2, नंदीग्राम की बर्बर हिंसा
नंदीग्राम के बारे में अद्यतन जानकारी के लिए नंदीग्राम लाल सलाम के ब्लाग पर आयें.